हिन्दू धर्म में मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक कई तरह के संस्कार किए जाते हैं। अगर बात कि जाए संख्या की तो कुल 16 संस्कार ऐसे होते हैं, जो कि बेहद महत्व रखते हैं। कर्णवेध संस्कार भी उन्हीं में से एक है। यह नवम संस्कार होता है, जिसमें बाल अवस्था में दोनों कानों को छेद करके उसमें सोने का कुण्डल धारण कराया जाता है। यह संस्कार 6 महीने से लेकर 16वें महीने तक शुभ समय और शुभ तिथि में करना सुखी और सार्थक जीवन के लिए अच्छा माना जाता है। तो चलिए इस लेख में हम आपको कर्णवेध मुहूर्त 2020 के साथ-साथ कर्णवेध संस्कार की पूरी विधि और इसके महत्व के बारे में बताते हैं।
दिनांक | वार | नक्षत्र | तिथि | मुहूर्त का समयावधि |
16 जनवरी 2020 | गुरु | हस्त | माघ कृ. षष्ठी | 07:15-09:42 |
17 जनवरी 2020 | शुक्र | चित्रा | माघ कृ. सप्तमी | 07:15-07:28 |
27 जनवरी 2020 | सोम | शतभिषा | माघ शु. तृतीया | 07:12-19:12 |
30 जनवरी 2020 | गुरु | उ.भाद्रपद | माघ शु. पंचमी | 15:12-19:00 |
31 जनवरी 2020 | शुक्र | रेवती | माघ शु. षष्ठी | 07:10-18:10 |
7 फरवरी 2020 | शुक्र | पुनर्वसु | माघ शु. त्रयोदशी | 07:06-18:24 |
13 फरवरी 2020 | बुध | हस्त | फाल्गुन कृ. पंचमी | 07:02-20:02 |
14 फरवरी 2020 | शुक्र | स्वाति | फाल्गुन कृ. षष्ठी | 07:01-18:21 |
17 फरवरी 2020
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सोम | ज्येष्ठा | फाल्गुन कृ. नवमी | 14:36-20:06 |
21 फरवरी 2020
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शुक्र | उत्तराषाढ़ा | फाल्गुन कृ. त्रयोदशी | 09:13-17:21 |
28 फरवरी 2020 | शुक्र | अश्विनी | फाल्गुन शु. पंचमी | 06:48-19:23 |
5 मार्च 2020
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गुरु | आर्द्रा | फाल्गुन शु. दशमी | 11:26-18:59 |
11 मार्च 2020 | बुध | हस्त | चैत्र कृ. द्वितीया | 06:35-18:36 |
13 मार्च 2020 | शुक्र | स्वाति | चैत्र कृ. चतुर्थी | 08:51-13:59 |
16 अप्रैल 2020 | गुरु | धनिष्ठा | वैशाख कृ. नवमी | 18:12-20:50 |
17 अप्रैल 2020 | शुक्र | उ.भाद्रपद | वैशाख कृ. दशमी | 05:54-07:05 |
27 अप्रैल 2020 | सोम | मृगशिरा | वैशाख शु. चतुर्थी | 14:30-20:07 |
29 अप्रैल 2020 | बुध | पुनर्वसु | वैशाख शु. षष्ठी | 05:42-19:58 |
30 अप्रैल 2020 | गुरु | पुष्य | वैशाख शु. सप्तमी | 05:41-14:39 |
13 मई 2020 | बुध | श्रावण | ज्येष्ठा कृ. षष्ठी | 05:32-19:04 |
14 मई 2020 | गुरु | श्रावण | ज्येष्ठा कृ. सप्तमी | 05:31-06:51 |
20 मई 2020 | बुध | अश्विनी | ज्येष्ठ कृ. त्रयोदशी | 05:28-19:19 |
25 मई 2020 | सोम | मृगशिरा | ज्येष्ठ शु. तृतीया | 05:26-05:54 |
27 मई 2020 | बुध | पुनर्वसु | ज्येष्ठ शु. पंचमी | 05:25-20:28 |
28 मई 2020 | गुरु | पुष्य | ज्येष्ठ शु. षष्ठी | 0525-0727 |
1 जून 2020 | सोम | हस्त | ज्येष्ठ शु, दशमी | 05:24-13:16 |
3 जून 2020 | बुध | स्वाति | ज्येष्ठ शु, द्वादशी | 05:23-06:21 |
7 जून 2020 | रवि | मूल | आषाढ़ कृ. द्वितीया | 05:23-19:44 |
8 जून 2020 | सोम | उत्तराषाढ़ा | आषाढ़ कृ. तृतीया | 05:23-18:21 |
10 जून 2020 | बुध | श्रावण | आषाढ़ कृ. पचमी | 05:23-10:34 |
11 जून 2020 | गुरु | धनिष्ठा | आषाढ़ कृ. षष्ठी | 11:28-19:29 |
15 जून 2020 | सोम | रेवती | आषाढ़ कृ. दशमी | 05:23-16:31 |
17 जून 2020
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बुध | अश्विनी | आषाढ़ कृ. एकादशी | 05:23-06:04 |
कर्णवेध मुहूर्त 2020 के अनुसार हिन्दू धर्म में कुल 16 संस्कार होते हैं, जिनमें से 9वां संस्कार कर्णवेध संस्कार है। शास्त्रों के अनुसार यदि किसी व्यक्ति का कर्णवेध संस्कार नहीं हुआ है, तो वैसी स्थिति में वह अपने प्रियजन के अंतिम संस्कार तक का अधिकारी नहीं माना जाता। इस संस्कार को उपनयन संस्कार यानि शिक्षा आरम्भ करने से पहले ही कराए जाने की सलाह दी जाती है, ताकि बालक की बुद्धि तेज़ हो और वह अच्छे से शिक्षा ग्रहण कर सके। कर्णवेध संस्कार कान छिदवाने की एक रस्म होती है, जिसके बारे में धर्म सिंधु जैसे कई अन्य हिंदू धर्मग्रंथों में भी आपको जानकारी मिल जाएगी। इस संस्कार को बच्चे के जन्म के बाद 6 महीने से लेकर 5 साल तक की आयु में ही किया जाना शुभ माना जाता है। पहले के समय में यह संस्कार लड़का और लड़की दोनों का समान रूप से होता था। लड़कियों के लिये कर्णवेध के साथ-साथ नाक छेदन की भी परंपरा होती थी, लेकिन वर्तमान में इस संस्कार को लड़कों के लिए भी बहुत कम किया जाता है। वहीँ आज कल कुछ लोग अपनी इच्छानुसार फैशन के तौर पर कर्णवेध करवाते हैं। ऐसा माना जाता है कि बालक/बालिका की जन्म कुंडली, नक्षत्रों, ग्रहों की स्थिति का सही आकलन करने के बाद ही कर्णवेध संस्कार के लिए शुभ मुहूर्त निकाली जानी चाहिए।
कर्णवेध मुहूर्त 2020 के इस माध्यम से आपको बताते हैं कि शास्त्रों के अनुसार कर्णवेध संस्कार व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्व रखता है। यह संस्कार बच्चे के जन्म के बाद से दसवे, बारहवे, सोलहवे दिन या छठे, सातवे, आठवे, दसवे और बारहवे माह में करना बहुत अच्छा रहता है। यदि किसी वजह से इस समय ये संस्कार नही हो पाए, तो शिशु के जन्म के तीसरे या पांचवें वर्ष में भी इसे कर सकते हैं। कर्णवेध संस्कार में शुभ लग्न, दिन, तिथि, माह और नक्षत्रों की बेहद अहम भूमिका होती है, इसीलिए हमें विशेष तौर पर इन बातों का ध्यान रखना चाहिए-
लग्न- वैदिक ज्योतिषियों अनुसार कर्णवेध संस्कार के लिए सबसे सर्वोत्तम स्थिति का निर्माण गुरु बृहस्पति के वृषभ, धनु, तुला और मीन लग्न में होने से होता है।
वार- कर्णवेध संस्कार के लिए सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार में से कोई वार होना बेहद शुभ माना जाता है।
तिथि- कर्णवेध संस्कार के लिए चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथि को छोड़कर बाकी सभी तिथि शुभ मानी गयी है।
माह - इस संस्कार के लिए मुख्यतौर से कार्तिक, पौष, चैत्र और फाल्गुन मास शुभ माने जाते हैं।
नक्षत्र- इस संस्कार के लिए नक्षत्रों की अगर बात करें, तो मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजीत, श्रवण, घनिष्ठा और पुनर्वसु सबसे शुभ माने जाते हैं।
कर्णवेध मुहूर्त 2020 में आपको बताते हैं कि कर्णवेध संस्कार न केवल ज्योतिष के आधार पर बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्व रखता है। चलिए जानते हैं, कर्णवेध संस्कार से होने वाले लाभ के बारे में -
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